गोवर्धन पूजा का शुभ समय पूजा विधि, गुरुवार 08 नवम्बर 2018


गोवर्धन की पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाई जाती है यह पर्व कृषि कार्य और पशुपालन को समर्पित है इसी वजह से ग्रामीण क्षेत्रों में इस पर्व को लेकर अधिक उत्साह देखने को मिलता है पौराणिक कथा के अनुसार द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत की पूजा करने की परंपरा शुरुआत करके कृषि और पशुपालन को महत्व देने का संदेश दिया था इसी दिन गाय बैल समय अन्य कृषि योग्य पशुओं की पूजा की जाती है गोवर्धन पर्व यह संदेश भी देता है कि गाय हमारी सांस्कृतिक में विशेष महत्व है गोवर्धन पूजा और पर्व पूरे भारतवर्ष में मनाया जाता है लेकिन उत्तर प्रदेश में विशेषकर मथुरा वृंदावन गोकुल आदि जगह इस पर्व को बड़े उल्लास के सााथ मनाया जाता है
गोवर्धन पूजा वेदों में इस दिन वरुण इंद्र अग्नि आदि देवताओं की पूजा का भी विधान है हमारा जीवन प्रकृति द्वारा प्रदान संसाधनों जैसे फसल वर्षा पशुधन आदि पर निर्भर है इसके लिए हमें प्राकृतिक और ईश्वर का सम्मान और धन्यवाद करना चाहिए गोवर्धन पूजा के जरिए हम समस्त प्राकृतिक संसाधनों के प्रति सम्मान व्यक्त करते हैं इस दिन गोबर से घर के आंगन में गोवर्धन की आकृति बनाई जाती है गोवर्धन के साथ साथ गाय बछड़े गोप गोपियों वाले आदि भी बनाए जाते हैं गोबर से बनी गोवर्धन की आकृति को गुलाल रंग मोर पंख पुष्प फल पत्तियों आदि से सजाया जाता है सूर्य अस्त के बाद रोली पुष्प धूप दीप आदि से गोवर्धन की पूजा करनी चाहिए और उन्हें दूध दही व पकवान का भोग लगाना चाहिए पूजन नवेद अर्पित करने के बाद गोवर्धन जी की परिक्रमा करनी चाहिए
गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त
पूजा सुबह  06:42 से 08:51
अवधि  2 घंटे 8 मिनट
पूजा शाम 15:15 से 17:23
अवधि  2 घंटे 8 मिनट
गोवर्धन परिक्रमा के अवसर पर गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा का विशेष महत्व बताया गया है यही वजह है कि हर वर्ष इस दिन देश विदेशों से लाखों श्रद्धालु भगवान गोवर्धन जी की परिक्रमा के लिए तीर्थ स्थल गोवर्धन पहुंचते हैं हर व्यक्ति अपनी अपनी श्रद्धा के अनुसार किसकी परिक्रमा करते हैं कोई पैदल करता है कोई वाहनों से करता है परिक्रमा संपन्न होने के बाद गोवर्धन पर्वत पर बनी यह राज्य के मंदिर में श्रद्धालु पूजा और अर्चना करते हैं
गोवर्धन पूजा की पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक समय देवराज इंद्र को अपनी शक्तियों का बड़ा अभिमान हो गया था और अहंकार हो गया था तब भगवान श्री कृष्ण ने एक लीला रची विष्णु पुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार गोकुल वासी अच्छी वर्षा और फसल के लिए खुशियों के साथ इंद्र देव की पूजा करते थे लेकिन एक समय बाल श्री कृष्ण ने लोगों से का अच्छी वर्षा और गायों को चारा के लिए गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए श्री कृष्ण की कि इस बात से सहमत होकर गोकुल वासियों ने गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी शुरू कर दी इस बात से देवराज इंद्र बड़े क्रोधित हो गए और इस अपमान के बदले उन्होंने वहां पर मूसलाधार बारिश शुरू कर दी बारिश से गोकुल वासियों की रक्षा करने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया इंद्र को जब पता चला कि भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं गोकुल वासियों की रक्षा की है तो उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा याचना कर उनकी वंदना की तब से ही गोवर्धन पूजा का विधान शुरू हो गया
आप सभी को ज्योतिषी सचिनता महाराज की ओर से गोवर्धन पूजा की ढेरों शुभकामनाएं