जया एकादशी का व्रत उपवास व जया एकादशी का महत्व

एकादशी का व्रत उपवास  महत्वपूर्ण बात रखता है | माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी को “जया एकादशी” के नाम से जाना जाता है | हर एकादशी के कुछ कारगर उपाय करके आप विष्णु को प्रसन्न कर सकते है |   यह एकादशी पाप का नाश करके पूण्य देने वाली है जिसके बारे में महाभारत में कृष्ण ने युधिष्ठिर को ज्ञान दिया था | यहां हम इस एकादशी की कथा है, इसके व्रत को करने का क्या महत्व है एवं व्रत करने से किस फल की प्राप्ति होती है, इसकी पूजा विधि आदि सभी बातो को बताएँगे |
 इस बार जया एकादशी 28 जनवरी 2018 को मनायी जाएगी
 दूजी एकादशी के लिए पारण (व्रत तोड़ने का) समय  07:16 से 09:22
पारण के दिन द्वादशी सूर्योदय से पहले समाप्त हो जाएगी
एकादशी तिथि प्रारम्भ 27 जनवरी 2018 को 11:15 बजे
एकादशी तिथि समाप्त 28 जनवरी को सुबह 08: 27 बजे
जया एकादशी का महत्व : युधिष्ठिर ने कृष्ण से पूछा की माघ मास में किसका पूजन किया जाये  जिसके उत्तर में श्री कृष्ण ने बताया की कि माघ शुक्ल पक्ष जया एकादशी का अत्यंत महात्म है . इस एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति नीच योनि भूत पिचाश से मुक्त हो जाता है. उसे विष्णु का वैकुण्ठ लोक की प्राप्ति होती है .
जया एकादशी व्रत कथा: एक बार नंदन वन में उत्सव चल रहा था. इस उत्सव में सभी देवता, जाने माने संत एवं दिव्य पुरूष भी शामिल हुए थे। उस समय गंधर्व गायन कर रहे थे और गंधर्व कन्याएं नृत्य प्रस्तुत कर रही थीं। सभा में माल्यवान नामक एक गंधर्व और पुष्पवती नामक गंधर्व कन्या का नृत्य चल रहा था। इसी बीच पुष्यवती की नज़र जैसे ही माल्यवान पर पड़ी वह उस पर मोहित हो गई। पुष्यवती सभा की मर्यादा को भूलकर ऐसा नृत्य करने लगी कि माल्यवान उसकी ओर आकर्षित हो। माल्यवान गंधर्व कन्या की भंगिमा को देखकर सुध बुध खो बैठा और गायन की मर्यादा से भटक गया जिससे सुर ताल उसका साथ छोड़ गए इंद्र का दोनों को पिचाश योनी का श्राप दोनों ही अपनी धुन में एक-दूसरे की भावनाओं को प्रकट कर रहे थे किंतु वे इस बात से अनजान थे कि देवराज इन्द्र उनकी इस यथा को समझ चुके हैं। देवराज को पुष्पवती और माल्यवान दोनों पर ही बेहद क्रोध आ रहा था, और तभी उन्होंने दोनों को श्राप दे दिया कि आप स्वर्ग से वंचित हो जाएं और पृथ्वी पर निवास करें। देवराज ने दोनों को नीच पिशाच योनि प्राप्त होने का श्राप दिया। इस श्राप से तत्काल दोनों पिशाच बन गए और हिमालय पर्वत पर एक वृक्ष पर दोनों का निवास बन गया। यहां पिशाच योनि में इन्हें अत्यंत कष्ट भोगना पड़ रहा था।
जया एकादशी व्रत और श्राप से मुक्ति
वे दोनों जब श्राप को भुगत रहे थे तो इसी बीच माघ का महीना आया और माघ के शुक्ल पक्ष की एकादशी भी आई। इस दिन सौभाग्य से दोनों ने केवल फलाहार ग्रहण किया। उस रात ठंड काफी थी तो वे दोनों पूरी रात्रि जागते रहे, ठंड के कारण दोनों की मृत्यु हो गई। किंतु उनकी मृत्यु जया एकादशी का व्रत करके हुई, जिसके बाद उन्हें पिशाच योनि से मुक्ति मिली और वे स्वर्ग लोक में पहुंच गए। यहां देवराज ने जब दोनों को देखा तो चकित रह गए और पिशाच योनि से मुक्ति कैसी मिली यह पूछा। माल्यवान के कहा यह भगवान विष्णु की जया एकादशी का प्रभाव है। हम इस एकादशी के प्रभाव से पिशाच योनि से मुक्त हुए हैं। इन्द्र इससे अति प्रसन्न हुए और कहा कि आप जगदीश्वर के भक्त हैं इसलिए आप अब से मेरे लिए आदरणीय है, आप स्वर्ग में आनन्द पूर्वक विहार करें।
व्रत उपवास और पूजा विधि
उपवास की विधि के संदर्भ में श्रीकृष्ण ने धर्मराज को बताया कि जया एकादशी के दिन भगवान विष्णु ही सर्वथा पूजनीय हैं। जो भक्त इस एकादशी का व्रत रखते हैं उन्हें दशमी तिथि से को एक समय आहार करना चाहिए। दशमी और द्वादशी  के दिन केवल और केवल सात्विक आहार ही ग्रहण किया जाए।
एकादशी के दिन श्री विष्णु का ध्यान करके व्रत रखने का संकल्प करें और फिर धूप, दीप, चंदन, फल, तिल, एवं पंचामृत से भगवान विष्णु की पूजा करे। पुरे दिन एकादशी व्रत के नियमो का पालन करे | सुबह और शाम को भगवान विष्णु के मंत्र का जाप करे |