देनिक पंचांग क्या होता है आओ जानते है आओ ज्योतिष सिखते है | भाग 1

ज्योतिष शास्त्र के पाँच अंगों की दैनिक जानकारी पंचांग में दी जाती है। ये अंग तिथि, वार, नक्षत्र, योग, करण हैं।

1. तिथि:  एक दिन को तिथि कहा गया है जो पंचांग के आधार पर उन्नीस घंटे से लेकर चौबीस घंटे तक की होती है। चंद्र मास में ३० तिथियाँ होती हैं, जो दो पक्षों में बँटी हैं। शुक्ल पक्ष में एक से चौदह और फिर पूर्णिमा आती है। पूर्णिमा सहित कुल मिलाकर पंद्रह तिथि। कृष्ण पक्ष में एक से चौदह और फिर अमावस्या आती है। अमावस्या सहित पंद्रह तिथि।
तिथियों के नाम निम्न हैं, प्रतिपदा (पड़वा), द्वितीया (दूज), तृतीया (तीज), चतुर्थी (चौथ), पंचमी (पंचमी), षष्ठी (छठ), सप्तमी (सातम), अष्टमी (आठम), नवमी (नौमी), दशमी (दसम), एकादशी (ग्यारस), द्वादशी (बारस), त्रयोदशी (तेरस), चतुर्दशी (चौदस) और अमावस्या (अमावस)  पूर्णिमा (पूरनमासी)।

2. वार: एक सप्ताह में सात दिन होते हैं 1.सोमवार, 2.मंगलवार, 3.बुधवार, 4.गुरुवार, 5.शुक्रवार, 6.शनिवार 7.रविवार

3. नक्षत्र: आकाश में तारामंडल के विभिन्न रूपों में दिखाई देने वाले आकार को नक्षत्र कहते हैं। मूलत: नक्षत्र 27 माने गए हैं। ज्योतिषियों द्वारा एक अन्य अभिजित नक्षत्र भी माना जाता है। चंद्रमा उक्त सत्ताईस नक्षत्रों में भ्रमण करता है। नक्षत्रों के नाम नीचे चंद्रमास में दिए गए हैं ,
1. चित्रा, 2. स्वाति, 3.विशाखा, 4. अनुराधा, 5. ज्येष्ठा, 6. मूल, 7. उत्तराषाढ़, 8. सतभिषा,  9.श्रवण, 10. धनिष्ठा 11.पूर्वभाद्र,  12.उत्तरभाद्र 13.अश्विन, 14. रेवती, 15. भरणी  16.कृतिका,  17.रोहणी, 18.मृगशिरा, 19.उत्तरा 20.पुनर्वसु, 21.पुष्य  22.मघा, 23.अश्लेशा 24.पूर्वाफाल्गुन, 25. उत्तराफाल्गुन,  26.हस्त 27. पूर्वाषाढ़,

4. योग: योग 27 प्रकार के होते हैं। सूर्य-चंद्र की विशेष दूरियों की स्थितियों को योग कहते हैं। दूरियों के आधार पर बनने वाले 27 योगों के नाम क्रमश: इस प्रकार हैं
1.विष्कुम्भ, 2.प्रीति, 3.आयुष्मान, 4.सौभाग्य, 5.शोभन, 6.अतिगण्ड, 7.सुकर्मा, 8.धृति, 9.शूल, 10गण्ड, 11.वृद्धि, 12.ध्रुव, 13.व्याघात, 14.हर्षण, 15.वज्र, 16.सिद्धि, 17.व्यातीपात, 18.वरीयान, 19.परिघ, 20.शिव, 21.सिद्ध, 22.साध्य, 23.शुभ, 24.शुक्ल, 25.ब्रह्म, 26.इन्द् 27.वैधृति

5. करण: एक तिथि में दो करण होते हैं एक पूर्वार्ध में तथा एक उत्तरार्ध में। कुल 11 करण होते हैं 1.बव, 2.बालव, 3.कौलव, 4.तैतिल, 5.गर, 6.वणिज, 7.विष्टि, 8.शकुनि, 9.चतुष्पाद, 10.नाग 11.किस्तुघ्न । कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के उत्तरार्ध में शकुनि, अमावस्या के पूर्वार्ध में चतुष्पाद, अमावस्या के उत्तरार्ध में नाग और शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के पूर्वार्ध में किस्तुघ्न करण होता है विष्टि करण को भद्रा कहते हैं भद्रा में शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं

आगे की जानकारी आओ ज्योतिष सीखते पार्ट 2 में